आसमाँ नीला
आसमाँ नीला
फूलों पे गज़ल लिखा जब
काटें भी शर्मा गये
काटों की तारीफ क्या कर दी
कलियाँ खफ़ा हो गयी
दिल गुनगुनाना चाहता था
नूर निहारा जब उनकी
करीब हुआ तो देखा
भौंरों की हुजूम खड़ा था।
शायद का गुंजाईश कहाँ
दिल से ना पूछो तो अच्छा
दमे का मरीज़ जमाने से है ये
आज भी शहद चाटता।।
दिमाग़ को तो ना पूछोगे
सलाह सही देता वो
आज वो भरमा दे शायद
उसकी कब सुनते हो।।
तितली पकड़ने की कोशिश
बच्चे करें तो अच्छा
तुम्हारी छूअन की छल
वे भी जानतीं ज़नाब।।
आसमाँ को निहारो कभी
धुप्प अंधेरे में नादां
रोशनियों मे तो अक्सर
नीला नीला सा दिखेगा।।