आसमाँ की चाहत
आसमाँ की चाहत
इक परिन्दा आसमाँ के प्यार में उड़ानें भरने लगा
हो गयी है मोहब्बत ऐ आसमाँ तुझसे, दिन रात ये कहने लगा
मेरा महबूब है सबसे प्यारा, ऐसा कहकर मुस्कुराने लगा
दूर गगन के आगोश में उड़कर, अपना प्यार जताने लगा
कहता उसको छू ना पाऊँ तो क्या, उसे जी भर कर देख तो सकता हूँ
उससे लिपट नहीं सकता तो क्या, उसकी जुल्फों में सो तो सकता हूँ
यूं ही धड़कनो से इबादत करता, मन ही मन मुस्कुराने लगा
इक परिन्दा आसमाँ के प्यार में उड़ानें भरने लगा
बादल , चाँद , तारे कितने खुशनसीब हैं, जो हमेशा उसके पास रहते हैं
क्या वो भी इस आसमान से बेपनाह प्यार करते हैं
फिर वो बोला: नहीं, ये सब स्वार्थी हैं
जो समय समय पर आसमान का साथ छोड़ देते हैं
रात हुई तो चाँद तारे
और मौसम के साथ बादल भी आसमाँ से मुँह मोड़ लेते हैं
ऐसा कहकर अपनी मोहब्बत पर इतराने, इठलाने लगा
इक परिन्दा आसमाँ के प्यार में उड़ानें भरने लगा
कितनी कोशिश करता रहता, दूर गगन में उड़ता रहता
चाह कर भी आसमाँ के करीब पहुँचने को तड़पता रहता,
पंखों ने भी जब दिया जवाब , टूट कर भी मुस्कुराने लगा
तेरा हो नही सकता शायद, ऐसा कहकर नीचे गिरने लगा
देखना अगले जन्म में तुझसे, सूरज बन मिलने आऊंगा
तेरे आँगन में उजाला करने वाला ,दीपक भी कहलाऊंगा
दिन भर तुझे रौशनी देकर, जब थक कर चूर हो जाऊंगा
रात को तेरी बाहों में , सुकून से सो पाऊँगा
यही दुआ करते करते , आखिरी सांस गिनने लगा
इक परिन्दा आसमाँ के प्यार में उड़ानें भरने लगा