तमाम उम्र मेरा दम उसी धूँए मे घुटा- वो इक चिराग था मैने उसे बुझाया है। तमाम उम्र मेरा दम उसी धूँए मे घुटा- वो इक चिराग था मैने उसे बुझाया है।
वो परिन्दा क़ैद में तड़पा बहुत जिसके ऊपर था कभी अम्बर खुला वो परिन्दा क़ैद में तड़पा बहुत जिसके ऊपर था कभी अम्बर खुला
एक निःस्वार्थ प्रेम कहानी..परिंदे की जुबानी.. प्रेम अमिट...निश्छल प्रतीत ! एक निःस्वार्थ प्रेम कहानी..परिंदे की जुबानी.. प्रेम अमिट...निश्छल प्रतीत !