आज हरी हूँ...
आज हरी हूँ...
1 min
27
आज हरी हूँ मैं
शान से खड़ी हूँ मैं
हरे तन के चुनर
लहराते पवन झकोर
बाँहें फैलाए दे रही मैं
छाया शीतल घनघोर
रसीले लदे फल देती
शुद्ध वायु फैलाती चहुँ ओर!
सावन में कजरी गाए गोरी
झूला बाँधे ,बाँहों में डोरी
पींग मारे हर्षित नारी।
हरी चूड़ियों की खन खन
झूमूँ मैं भी मगन सन सन।
बोले कोयलिया ,कुहू कुहू मतवाली
फुदके गिलहरी डाली डाली।
नाचे मोर मगन ,सब बजाए ताली
सहम गई जब देख ,कटी बग़ल की डाली
एक दिन
बारी मेरी भी आएगी
कुल्हाड़ी तन पर चलेगी
आज हरी हूँ मैं
कल पीली हो जाऊँगी मैं।
