आईना में नैना
आईना में नैना
आंखों में काजल था,
घूंघट के आड़ में थी।
सिर्फ थोड़ा ही चेहरा दिखा,
वो चमक आईना जैसी थी।
कितनी लाजवाब थी पूछो न,
कुदरत ने इन्हें फुरसत से बनाया होगा।
देखते ही हम शर्मा गए उनकी गुलाबी होंठों से,
खुद चमक छोड़ गई, आईना शर्मा गया अब क्या होगा।
पहली नजर में मिली खिड़कियों से देखा उसने,
हाथ में आईना थोड़ी मुस्कान, नजरें आईना में थी।
बिना पलक झुकाए देखा उसने, इन नशीली आंखों से,
ठहर गई नजर उसी पर, वो क्या हम पर मरती थी।
दूरियां तो बढ़ती रही काली आंखों से,
तिरछी इशारों से।
करिश्मा हुआ ईश्वर का एक बार फिर।
प्यार के डोर में बंध चले सबेरे से।