यूंही खोते खोते ज़िन्दगी को, रुककर कुछ देर ढूंढ रही हूं खुद को, कागज़ और कलम में जी रही हूं खुद को।
Share with friendsइतना लिखकर शीला जी ने बेटे को खत के साथ प्रॉपर्टी के पेपर्स भी भिजवा दिए!
Submitted on 11 Apr, 2021 at 04:06 AM
और जो सबकी जिम्मेदारी की पगड़ी अपने सिर बांधती है उसकी पगड़ी की रस्म तक नहीं होती।
Submitted on 10 Apr, 2021 at 08:19 AM
अपने दिमाग से चले पर विधाता की मर्जी के आगे वो आज भी बेबस है।
Submitted on 05 Apr, 2021 at 12:11 PM
सौम्या बहुत टूटा हुआ महसूस कर रही थी, सोचते सोचते उसकी आंखों में आंसू आ गए
Submitted on 30 Mar, 2021 at 12:31 PM
फिर मां से विदाई लेने का समय आया।मां तो अपने बेटे को गले लगा बच्चों सी बिलख कर रो पड़ी।
Submitted on 27 Mar, 2021 at 03:56 AM
बेटा, यही नियम है समाज का पति के जाते ही सब रंग भी औरत की ज़िंदगी से चले जाते हैं।"
Submitted on 23 Mar, 2021 at 04:05 AM
याद आया ,रिश्वत देकर बनने वाले हो ना इसलिए शायद समझ नहीं पा रहे हो
Submitted on 23 Mar, 2021 at 03:49 AM
आकाश की भी नजरें, जैसे ठहर गई वसुधा को यूं शादी के जोड़े में देखकर।
Submitted on 23 Mar, 2021 at 03:43 AM
इतने में रौशन आया और पीछे से सिया के गालों पर रंग लगा दिया!!
Submitted on 20 Mar, 2021 at 03:39 AM
जहां संस्कारों की कीमत बच्चों को अपनी जान देकर चुकानी पड़े उन संस्कारों का कोई फायदा नह
Submitted on 14 Mar, 2021 at 04:10 AM