दैवत शिवाजी ( अभंग रचना )
दैवत शिवाजी ( अभंग रचना )
पहाटेचे स्वप्न | जिजाऊंचा प्राण॥
स्वराज्याची शान | शिवराय ॥१॥
बालपनी घेती | हाती तलवार ॥
कावा शत्रूवर | गनिमी तो ॥२॥
लढाया जिंकती | तह ही करती ॥
अशी राजनीती | सर्वश्रेष्ठ ॥३॥
परस्त्रीला मानी | ते मातेसमान ॥
संत शिकवण | तुकोबांची ॥४॥
आज्ञापत्रे पहा | काळजी प्रजेची ॥
अष्टमंडळाची | लोकशाही ॥५॥
सागरी नजर | होई थरकाप ॥
बसवती चाप | सरदार ॥६॥
संस्थापक होई | असा स्वराज्याचा ॥
राजा रयतेचा | छत्रपती ॥७॥
यवन इंग्रज | करती मुजरा ॥
राज दरबारा | लवुनिया ॥८॥
जिंकती ती मने | सुखी ती जणता
राजा हा जाणता | अलौकिक ॥९॥
दैवत शिवाजी | तो पृथ्वीवरती ॥
स्फुरते ही छाती | मराठीची ॥१०॥