अपेक्षा
अपेक्षा
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यह भी क्या
हर-रोज़
शिकायत मुझसे,
क्यूँ मेरे यार
इतनी
नफरत मुझसे।
सिमटना चाहूँ तो
खुशबू सी
फितरत खोजो मुझमें,
बिखरना चाहूँ तो
फिर सिमट जाने की
ख्वाहिश मुझसे।
लिखूँ मैं रोज़
कुछ नया और
तुम सुनो मुझसे,
कोई अखबार
बन जाने की
क्यूँ हसरत मुझसे।
गुजरते वक्त
जरा कुछ लम्हे
दे दो मुझको,
सिलवटें मिटा के
सँवर जाने की
है हिदायत मुझको।