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कुसुमायुध

कुसुमायुध

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बहुव्रीहि समास की श्रेणी में 

रखते हुए

करते आए हैं हम 

'कुसमायुध' पद का विग्रह-

कुसुम ही है जिसका आयुध

अर्थात् कामदेव


माना गया है पुराणों में

कामदेव के पास

गन्ने से बना एक धनुष है

जिससे छोड़े जानेवाले बाण

फूलों के होते हैं


भगवान शिव पर

जिसने अपना

पुष्पबाण चलाया

वे कामदेव ही थे

शिकार होकर

शिव के क्रोध का

वे पहले भस्म हुए

और फ़िर अनंग


कामदेव प्रकट हों न हों

भौतिक रूप में,

नहीं किया जा सकता इनकार

हम सबके भीतर

उनकी उपस्थिति से

किसी-न-किसी रूप में


परमाणु बम और उन्हें

हज़ारों किलोमीटर दूर

दुश्मन-आबादी के ऊपर

गिराने और

उन्हें कई नस्लों तक


बंजर कर देने के उद्देश्य से

नित्य नई

बनाई जाती मिसाइलों

के इस युग में

कोई पुष्प

क्या सचमुच ही

आयुध बन सकता है !

अगर हाँ तो

वह कैसा आयुध होगा !


आख़िरकार,

यही तो वसंत की

अपरिहार्यता है,

जिसमें दिलों को

छलनी करने का

युद्ध लड़ा जाता है

कामदेव के हैं ये पाँच पुष्पशर-


'नीलकमल''

'मल्लिका' 'आम्रमौर'

'चंपक' और 'शिरीष कुसम'-

इनमें से किसी एक से

घायल हो ही जाएगा


अंततः दुनिया का कोई भी

समाधिस्थ योगी

जैसे घायल हुए थे शिव


वसंत ऋतु है

आनंदोत्सव की

घायल होने और करने की


दर्द सहने और सहलाने की

दर्द जो मीठा है

दर्द जो क़िस्मत से

क़िस्मत वालों को

नसीब होता है।


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