शिद्दत
शिद्दत
मैं तो बड़ी शिद्दत से दिल लगाती हूँ,
पर प्यार में हर बार हार जाती हूँ,
ये दुनिया है तमाशबीनों की,
तमाशा बन कर रह जाती हूँ,
बड़ी शिद्दत से पंछी की तरह,
मैंने अपने चूजों को परवाज़ सिखाया,
ऐसी भरी उड़ान फिर कभी,
लौट कर नहीं आये,
दिल में हसरत लिए दीदार की,
खिस्यानी सी रह जाती हूँ,
मैं तो बड़ी शिद्दत से दिल लगाती हूँ,
पर प्यार में हर बार हार जाती हूँ,
बड़े प्यार से सभी बच्चों को,
अपने से लिपटाती हूँ,
अपने ख्वाबों को होमकर,
उनके ख्वाबों को परवान चढ़ाती हूँ,
अपनी हर मुराद में उन्हीं को शामिल पाती हूँ,
दरक़ार हो उनकी दहलीज़ की जब,
लाचार, बेसहारा, बेआसरा नज़र आती हूँ,
दामन जो मेरा पल - भर भी ना छोड़ते थे,
साड़ी का पल्लू पकड़, आँगन में जो डोलते थे,
आँचल को ढ़ाप, जिनको लोरी गा कर सुलाया,
आज लोरी भी रूठ गयी, बच्चे भी,
बड़ी मुश्किल से अपने आँचल के उस पल्लू से,
अपने आँसुओ के सैलाब को रोक पाती हूँ,
मैं तो बड़ी शिद्दत से दिल लगाती हूँ,
पर प्यार में हर बार हार जाती हूँ,
करवट बदलने पर भी जो सहम जाते थे,
चीखें मार -मार कर जो आवाज़ लगाते थे,
एक पल भी जो मुझसे दूर ना रह पाते थे,
आज मैं कितना भी चीखूँ उन्हें बुला नहीं पाती हूँ,
न आने पर उदास हो जाती हूँ,
मैं तो बड़ी शिद्दत से दिल लगाती हूँ,
पर प्यार में हर बार हार जाती हूँ,
माया माँ की ममता को ठग गयी,
भौतिकता उस पर भारी पड़ गयी,
पश्चिमी सभ्यता ने ऐसा रास रचाया,
बच्चों की मानसिकता को ऐसा भरमाया,
न चाहते हुए भी बच्चे पलायन कर गए,
हम तो हाथ मलते - मलते ही रह गए,
मैं तो बड़ी शिद्दत से दिल लगाती हूँ,
पर "शकुन" प्यार में हर बार हार जाती हूँ !