kanchan chauhan

Children

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तुम अभी बच्चे हो

तुम अभी बच्चे हो

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शुक्ला जी और कुमार साहब दोनों पड़ोसी थे। दोनों के ही बेटे किशोर अवस्था के थे। दोनों के  बेटे एक ही स्कूल में और एक ही कक्षा में पढ़ते थे। दोनों पड़ोसियों की सोच में  ज़मीन आसमान का अंतर था। 

शुक्ला जी एकदम कड़क  मिजाज के इंसान थे। उनका बेटा रजत जो १०वी कक्षा में था,मजाल है, बिना बालों में तेल लगाए स्कूल चला जाए वहीं कुमार साहब अपने बेटे शरद  के साथ  एकदम बिंदास थे

स्कूल में सब रजत को चंपू बुलाते थे। रजत बहुत परेशान रहता था। घर में पापाजी और स्कूल में दोस्त।

समझ ही नहीं आता था, पापाजी का रवैया, कुमार अंकल का बेटा शरद दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाए,तो बहुत बढ़िया, मैं घूमने के लिए बोलता, तो तुम अभी बच्चे हो। शरद डांस करता तो  पापाजी कहते, अरे! वाह कुमार तुम्हारा शरद तो बहुत अच्छा डांस करता है, इसे तो मुम्बई  भेज दो, मैं डांस करता तो ये डांस तुम्हें अच्छे नंबर नही दिलाएगा,पढ़ने में ध्यान दो,तुम अभी बच्चे हो।

शरद फैशन करे तो पापाजी कहते क्या बात है शरद,खूब जच  रहे हो और मैं  बिना तेल के दिख जाता,तो पापाजी बवाल मचा देते सारे घर में, कोई जरूरत नहींं है फ़ैशन फुशन  करने की,तुम अभी बच्चे हो।

शरद और मैं हम दोनों ही हम उम्र  थे। मैंने कई बार पापाजी को मम्मी से कहते हुए सुना था, कुमार ने अपने बेटे को ज्यादा छूट  दे रखी है, जवान बच्चे का ख्याल रखना चाहिए।

मुझे एक बात नहीं समझ आती थी कि अगर शरद जवान है तो मैं बच्चा कैसे हुआ। पापाजी तो मेरे दिमाग की दही कर देते थे।

 आज मैं खुद एक पिता हूं।एक सफल इंसान हूं। अच्छी नौकरी है। आज मैं समझ सकता हूं कि पापाजी की सख्त होने के पीछे की मंशा, कि मैं बिगड़ ना जाऊं।

हर किशोर अवस्था के बच्चों के  माता-पिता को चिंता रहती है कि उनके बच्चे गलत दिशा की तरफ भटक ना जाए।

पापाजी गलत नहींं थे, बस उनका तरीका ज़रा सा सही नहीं था। 


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