तेरी मेरी उसकी बात
तेरी मेरी उसकी बात
तेरी मेरी उसकी बात....कभी हुआ करती थी इस तरह की बातें.... कभी पंचायतों में..कभी चौपालों में.. कभी घरों में..कभी ड्रॉइंग रूम में....
लेकिन अब तो अरसा बीत जाता है बात करके...
अब जब बोलचाल ही नही तो बात कहाँ?बात नही फिर शब्द तो मन मे अंदर ही रह गये न?
शब्द अंदर घुटने से मन मे घुटन तो होगी न?
मन मे घुटन से फिर चुभन ना होगी? यह चुभन कैसे दूर होगी? यह चुभन दूर होगी भला?
अब तो घर में भी लोग मोबाइल फोन लेकर अपनी अपनी दुनिया में मशगूल रहते है...भला फिर इस चुभन का क्या करे?
कोई गर कहे की सब आज़ाद है.....नही, यह आज़ादी नही है...यह तो संवादहीनता है...
आज़ादी और संवादहीनता की स्थिति में मन इसी उधेड़बुन में रहना चाहता है... क्योंकि पहल कौन करे?
लेकिन जिंदगी ऐसी उधेड़बुन में तो नही चलेगी न?
संवाद तो कायम करना ही होगा...
तो चले, बात शुरू करते हैं.....कोशिश करते हैं किसी पब्लिक प्लेस पर जाकर... बस स्टॉप पर या किसी पार्क में.... आज का मौसम बड़ा ठंडा है, नही? ऐसे ही कुछ बात कहते हुए शुरू करते है। देखियेगा, सामनेवाला कुछ न कुछ जरूर रिस्पॉन्ड करेगा। बस फिर क्या? एक मुस्कुराहट के साथ जो बात शुरू होगी वह न जाने कितने ही किस्सों की शुरुवात करेगी...... क्योंकि वह सामनेवाला व्यकि भी तो इसी मोबाइल और इंटरनेट ज़माने का है...उस सामनेवाले को भी बातचीत करने के लिए अकुलाहट हो सकती है...बिल्कुल हमारी तरह....