प्यार एक प्रतीक्षा
प्यार एक प्रतीक्षा


मां ! "जल्दी से रुपए दे दो कॉलेज की कैंटीन से लेकर कुछ खा लूंगी। मान्या जोर से बोली अब फ्रेन्डस भी हंसने लगी है तुम्हारी भाभी ने क्या आज भी
शर्म आती है माँ अपने ऊपर" वह भुनभुनाने लगी।।
"क्यों नाश्ता नहीं बना भाभी कहां है?" मां ने बीच में टोक दिया "ये तो रोज रोज का रोना है, मेरे पास समय नहीं कि मैं देखूँ कौन क्या कर रहा है ? हां आपकी जानकारी के लिए बता दूं। अभी तो भाभी कमरे से भी बाहर नहीं निकली हैं।" तुनककर किताब उठाते हुए मान्या ने कहा जबकि उसने दिशा भाभी को अपनी ओर हाथ में नाश्ते की प्लेट लाते हुए देख लिया था। उनके हाथ से प्लेट लेकर वहीं मेज पर पटक कर वह कॉलेज चली गई और पीछे छोड़ गई चिंगारी जिसको हवा देती मां।
वे सारा घर सिर पर उठा लेती "कहां हम तो सुबह पहले जागकर सब की सेवा में लग जाते थे और यहां ये महारानी दिन चढ़े तक उठने का नाम नहीं लेती ,पता नहीं कौन से जनम का बदला भगवान ले रहा है हमसे, ऐसी बेशर्मी ।"
कोलाहल सुनकर सुबह सुबह पति की नींद में जब खलल पड़ता। वह भी दिशा से बिना कारण जाने चिढ़ते हुए ऑफिस चले जाते।
सुबह से शाम तक इस घर की यही दिनचर्या थी, बेटी मां के कान भरती और माँ ऑफिस से आते जाते दिशा के खिलाफ अपने बेटे को भड़काती।
दिशा की शादी के चार साल हो गये थे पर जितना वह रिश्तों को समेटने की कोशिश करती। उतने ही वे बिखरते जा रहे थे। विशेष रूप से पति के साथ। धीरे धीरे वह अपने आपको नितांत अकेली असहाय महसूस करने लगी थी।
उसका रिश्ता जब इस परिवार से जुड़ा था तब से वह सतरंगी सपनों में खोई रहती थी कल्पना में उड़ान भरती सोचती मुझे एक छोटी प्यारी बहन मिलेगी, मेरी सुख-दुख की साथी और एक मां मिल जाएगी जिनकी गोद मेरे लिए मीठी लोरी होगी। बचपन से लेकर अब तक मेरा कोई साथी कोई, राजदार नहीं रहा केवल मम्मी पापा और मैं, देर से ही सही पर ईश्वर ने मेरी प्रार्थना तो सुनी। कितनी खुश थी वह।
मान्या पहली बार शादी के बाद कुछ दिनों के लिए अपने मायके आई थी। सुबह पूज
ा के फूल तोड़ने के लिये निकली ही थी कि मां की गुस्से भरी आवाज सुन कर रुक गई , सदा की तरह निशाना भाभी थी। जल्दी से वह गुलाब के फूल तोड़ कर अंदर भागी।
"क्या हुआ मां क्यों हो रही हो इतना गुस्सा?" "तो और क्या करूं? इतनी देर बाद तो चाय मिली है और उसमें भी शक्कर कम" मां गुस्से में बोली
"पर मां मेरी चाय में तो शक्कर ठीक थी" मान्या ने प्रश्नात्मक ढंग से दिशा की तरफ देखा "वो दीदी आपके भाई ने मां की चाय में कम शक्कर डालने के लिए कहा है मां को डायबिटीज है ना।"
"'लो सुन लो इसका नया झूठ !अब मुझे मेरे बेटे के खिलाफ भड़का रही है वह मना करेगा इसे भला, सीधे मुंह बात तो करता नहीं इससे मेरी क्या आंखें नहीं है?"
मां का गुस्सा और बढ़ गया "मां !भाभी ठीक ही तो कह रही है ज्यादा मीठी चाय पियोगी तो दिक्कत आपको ही होगी"
"अच्छा जी तो अब यह भी बता दे! मेरे लिए सब्जी में तेल मसाले नमक क्यों कम डालती है। किसने मना किया "
"माँ! यह तो आप भी जानती हैं हृदय रोगी हो आप और यह सब आपको नुकसान करता है"
"अच्छा! तो देर तक भी इसीलिए सोती होगी कि जल्दी उठने से मेरी बीमारी बढ़ जाएगी" मां कहां देर से उठती है भाभी आजकल कौन उठता है सुबह पाँच बजे? फिर बेबी कितनी छोटी है रात रात भर जगाती होगी। छोटे बच्चे के साथ वैसे भी दिन रात आराम उन्हें कहां मिलता है?"
मान्या ने मां को समझाना चाहा ।
"और क्या दुख है इसे, यह भी पूंछ ले, और तू कब से इसकी तरफदारी करने लगी ? कल तक तो मेरी हां में हां मिलाती थी "'मां ने आश्चर्य से बेटी को देखते हुए कहा ।
हाथ में पकड़ा गुलाब का कांटा मान्या के हाथों में जोर से चुभ गया। थोड़ा रूक कर, नजरें झुका कर उसने जवाब दिया "तब मैं किसी की भाभी नहीं थी न माँ? "
पर मान्या का जवाब सुनकर दिशा भौंचक हो गई। दरवाजे की ओट में खड़े पति की पहली बार प्यार भरी मुस्कान देखकर उसे विश्वास हो गया कि इस ईंट गारे के बने घर में अब कोई छेद नहीं होगा।
बहन जैसी ननद और हिंडोला देने वाली सासू मां छत बन कर छाई रहेंगी। वह अपने पिया के साथ शादी के पहले देखे गए अपने सतरंगी सपनों को पूरा करने के लिए चल दी।