प्रतीक्षा

प्रतीक्षा

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बालकनी में सुखे कपड़े उठाते हुए मोना ने देखा, बगल के घर की विमला आंटी आज भी रोज की तरह लॉन की कुर्सी पर बैठी हैं। उनका चेहरा गेट की ओर है। हवा की सरसराहट के बीच कुछ अधूरे से शब्द सुनाई दे रहे थे। शायद आंटी कुछ गुणगुणाती हों। पर वे रोज शाम को चुपचाप बाहर बैठ कर करती क्या हैं? कई दिन ध्यान से देखा तो समझ आया, लगभग साढे पांच बजे लॉन की और घर की बत्तीयां जला कर वे आकर इस कुर्सी पर बैठ जाती थी और अंधेरा होने तक चुपचाप बैठी रहती फिर धीरे- धीरे भारी कदमों से घर के अंदर चली जाती। आंटी का चुपचाप बैठना, एक बार भी टहलने न उठना और बीच- बीच में दरवाज की ओर देखना मोना को थोड़ा अजीब लगता। उसने सोचा रेणु से इस बारे में पूछ-ताछ करेगी।

जब से वह इस कॉलोनी में रहने आई है। विमला आंटी की बहू रेणुका से ही उसकी सबसे अच्छी दोस्ती है। रविवार की दोपहर वह घर का काम निबटा कर विमला आंटी के घर पहुंच गई। इधर- उधर की बातों के बाद उसने पूछ ही लिया, ‘यार ये आंटी रोज शाम को उदास सी अकेली लॉन में क्यों बैठी होती है’।

 ‘वे पापा की प्रतीक्षा में होती हैं’, रेणु ने कहा तो मोना चौंक गई।

 ‘पर, तुम्हारे ससुर जी तो अब इस दुनिया में नहीं हैं न’।

‘हां, अब एक साल होने को आया, पापा को गुजरे पर मम्मी अब भी पहले की तरह लॉन में उनका इंतजार करती हैं। कहती है जब शादी हुई तो उनके और पापाजी के लिए शाम का समय बहुत खास होता था। सुबह उठकर तो मम्मी को घर के काम निबटाने होते थे और पापा को आफिस की तैयारी करनी होती थी। इसलिए एक दूसरे से ठीक से बात भी नहीं हो पाती थी। पापा शाम को साढ़े पांच बजे आफिस से लौटते थे। तब मम्मी सारे काम निबटाकर बच्चों को नाश्ता करा कर, पूजा रूम में शाम का दीप जलाकर लॉन में बैठकर उनका इंतजार किया करती। पापा आते तो अंदर जाने की बजाए दोनों साथ में थोड़ी देर बाहर ही बैठते फिर अंदर आकर चाय- पानी लेते। रिटायरमेंट के बाद भी पापा शाम को चार बजे टहलने चले जाते और वही साढ़े पांच बजे लौटते’। मम्मी बताती हैं, ‘पापा कहते थे, जब तक हम दोनों हैं यूं ही शाम को मिला करेंगे। चालीस साल वादा पूरे करके पापा दुनिया से विदा हो गए पर मम्मी अब भी रोज उनकी प्रतीक्षा करती हैं। उनका कहना है मरते दम तक रोज मिलने का वादा था तो जब तक जीवित हूं उनकी प्रतीक्षा तो करूंगी’। मोना प्रेम की ऐसा एहसास सुनकर दंग रह गई।



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