Anita Bhardwaj

Others

4.8  

Anita Bhardwaj

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मेरा बच्चा रेस का घोड़ा नहीं

मेरा बच्चा रेस का घोड़ा नहीं

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"मेरे बच्चे के मां बाप अलग हैं, घर का माहौल अलग है, फिर मैं क्यूं उसका मुकाबला दूसरों से करती रहूं?" शालिनी ने अपनी सासू मां पवित्रा जी से कहा।

शालिनी की शादी को 1 साल पूरा हुआ और उसे मातृत्व का सुख भी जल्दी ही मिल गया। शालिनी अपने घर में सबसे छोटी बेटी थी, उसने घर में किसी बच्चे को अपने सामने पलते नहीं देखा था। यूट्यूब, मैगज़ीन से जितना पढ़ा उतना ही उसे मातृत्व के बदलाव , सुझाव के बारे में पता था।

घर में सबसे बड़ी बहू बनकर आई शालिनी ने सोचा था, बच्चे के होने के बाद तो सासू मां उससे और भी प्यार करेंगी। दोनों मिलकर पाल लेंगे बच्चे को।

पर हुआ इससे उलट;जब शालिनी और उसकी सासूमां को पता चला कि बच्चा दूसरे बच्चों से कमजोर है। पवित्रा जी ने भौंहे सिकोड़ते हुए कहा-

"तुमने तो पहले महीने से ही डॉक्टर की दवाइयां ली, आराम किया, खूब खाया पिया, इतना वजन बढ़ा लिया और बच्चा इतना कमजोर पैदा किया?"

शालिनी की खुशी हर रोज ऐसे ही ताने सुनकर आंसूओं में तब्दील हो जाती थी।

पवित्रा जी बेटे के सामने कहती -" इसे तो ये भी नहीं पता बच्चे को दूध कैसे पिलाना है। दूध पिलाकर कंधे से भी नहीं लगाती। बच्चे ने सारे दूध की उल्टी कर दी ।"

रोहन -" मां पहला बच्चा है। आप उसे समझाया करो ना । क्या सही है क्या गलत!"

पवित्रा -" अरे बेटा!! कुछ कहती हूं तो रोना शुरू कर देती है। इसलिए मैं तो चुप ही रहती हूं। मेरे पोते की किस्मत ही खराब है। इसलिए कहती थी तुझे पढ़ी लिखी लड़कियों से कहां बच्चे पलने है। आया रखेंगी इनके बच्चों को।"

रोहन -" नहीं मां! शालिनी ने तो बच्चे के लिए नौकरी तक छोड़ दी। आप उसे प्यार से समझाओगे तो क्यू रोएगी?"

पवित्रा-" अच्छा!! तो तेरे कान भर ही दिए उसने। मैंने कब गुस्से से बात की उससे? पहले अपने बच्चे पाले अब बहुओं के बच्चे भी मैं ही पालूं??तुम्हारा बच्चा तुम्हारी जिम्मेदारी है मेरी नहीं।"

पवित्रा जी गुस्से में उठकर अपने कमरे में चली गई।

शालिनी तो पहले ही इतने तनाव में रहती थी, फिर सासू मां का ये रवैया देखकर तो उसे लगता था, क्या मां बनना कोई गलती है क्या??

या मैं ही अच्छी मां नहीं हूं। वो रोज इसी चिंता में घुलती जा रही थी।

फिर रोहन ने शालिनी की मां को ये सब बताया उन्होंने बच्चे की देखभाल, तेल मालिश के लिए एक कामवाली का प्रबंध किया।

वो शालिनी की हर काम में मदद करती। बच्चे को कैसे दूध पिलाना है। कैसे थपकी लगाकर सुलाना है। अब शालिनी को भी कुछ घंटे का आराम मिलने लग गया।

पवित्रा जी आए दिन कुछ ना कुछ सुनाती ही रहती। पर अब शालिनी अपने बच्चे के साथ खेलती हुई , मुस्कुराती हुई रहती।

धीरे धीरे बच्चा बड़ा होने लगा तो फिर से पवित्रा जी ने कहा -" 7 महीने का हो गया अब तक गर्दन उठानी नहीं सीखा?हमारे बच्चों ने 4-5 महीने में ही सीख ली थी। अब आया के हाथ के पले बच्चों का क्या कसूर?"

शालिनी को फिर से चिंता होने लगी, वो रात भर इंटरनेट पर सर्च करती रहती, कहीं कोई बीमारी तो नहीं। कहीं कोई उपाय मिले। जो भी उपाय मिलता वो सब कोशिश करके देखती।

बच्चा एक तो जन्म से ही कमजोर था। शालिनी अपना दूध भी इतना नहीं पिला पाती थी। वो खुद को अपराधी जैसा महसूस करने लगी थी।

डॉक्टर से सलाह ली। डॉक्टर ने कहा कुछ बच्चों का विकास होता है देरी से ,घबराओ नहीं। मां का भी मानसिक रूप से स्वस्थ होना बहुत जरूरी है, तभी बच्चा भी स्वस्थ बन पाएगा।

धीरे धीरे बेटा 1 साल का हो गया। बच्चे के जन्मदिन पर सब रिश्तेदार आए।

रोहन की मामी जी ने कहा -" अब तक घुटनों के बल भी नहीं चलता क्या बच्चा? हमारा पोता तो पहले जन्मदिन तक खड़ा होकर चलने लग गया था।"

पवित्रा -" चुप रहो भाभी!! हमारी कौन सुनता है। अभी रोना शुरू कर देगी। आया ने पाला है बच्चे को। ये तो होना ही था! पता नहीं कैसी मां है,कुछ पता ही नहीं है इसे।"

शालिनी के कानों तक उनकी आवाज़ पहुंच रही थी। पर उसने खुद को संभाला हुआ था।

शालिनी की मां अपनी बेटी का चेहरा देखकर समझ गई थी कि बेटी चिंता में है।

शालिनी ने डॉक्टर से बात की, बच्चा अभी कुछ बोल भी नहीं पा रहा था।

डॉक्टर ने कहा, -" थोड़ा इंतजार करो। वरना हम थेरेपी शुरू करेंगे। अभी इसकी मालिश करें और बच्चे से बातें करें। आप ही चिंता में रहेंगी तो बच्चा कैसे सीखेगा?

बच्चा कुछ शब्द सुनेगा तभी तो बोलना शुरू करेगा!"

शालिनी ने खुद को संभाला, अब रोज अपने हाथों से मालिश करती। खूब बातें करती।

धीरे धीरे बेटे ने बोलना भी शुरू कर दिया। शालिनी बच्चे के साथ लगी रहती।

अब बेटा 3 साल का हो गया था तो उसे प्ले स्कूल में दाखिल करवाया।

थोड़े दिन में शालिनी ने नोट किया बच्चा चिड़चिड़ा सा हो गया, स्कूल जाने के नाम पर भी खूब रोता। उसने स्कूल की अध्यापिका से भी बात की।

अध्यापिका -" आपका बेटा बाकी बच्चों से बहुत पिछे है। सब अपना खाना पीना ख़त्म कर लेते है, ये तब भी सिर्फ बैठा रहता है। ना खेलता है। कुछ भी नहीं कर पा रहा है। आप इसे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाएं।"

शालिनी का सब्र अब जवाब दे गया था, अब तक तो सासूमां हमेशा उसके बेटे को दूसरे के मुकाबले रखती रही, अब स्कूल में भी ये सब होगा! नहीं!!

शालिनी -" मैडम एक बात बताए!! क्या आप आपने कोई नेशनल स्पोर्ट्स खेला है? या कोई मेडल लिया हो किसी गायन या नृत्य प्रतियोगिता में!"

अध्यापिका -" नहीं!! मुझे वो सब नहीं आता। पर इन सवालों का क्या मतलब है?"

शालिनी -" अगर आप मेरे बच्चे को नहीं सीखा पा रही तो इसका मतलब ये नहीं कि बच्चा कुछ सीखना ही नहीं चाह रहा। आपको भी बहुत सी चीजे नहीं आती तो क्या आपको भी डॉक्टर की जरूरत है?"

अध्यापिका -" आप गलत समझ रही है। आप बच्चे का कहीं और दाखिला करवा दे। हमारे यहां नहीं सीख रहा वो।"

शालिनी ने मन बना लिया था अब वो किसी को भी ये हक नहीं देगी की कोई उसके बच्चे का मुकाबला दूसरे बच्चों से करता रहे। वो बेटे को लेकर घर आ गई।

जब 2-3 दिन बेटा स्कूल नहीं गया तो पवित्रा जी ने पूछा -" क्या हुआ ये आजकल जाता क्यूं नहीं प्ले स्कूल! कोई दिक्कत है क्या!!"

शालिनी -" हां!! इसकी अध्यापिका को इसे कुछ सिखाना नहीं आ रहा था। बस ये दिक्कत थी। अब मैं सिखाऊंगी। "

पवित्रा जी पहली बार शालिनी को इतने विश्वास के साथ जवाब देते देख रही थी, इसलिए चुप रहने में ही भलाई समझी।

शालिनी ने डॉक्टर की सलाह से बच्चे के जरूरी खेल, थेरेपी शुरू करवाई। बच्चा अच्छे से खेलता, बोलने भी लग गया था।

अब शालिनी ने उसे स्कूल में दाखिल कर दिया था।

शालिनी -" मैडम!! आपसे बस ये प्रार्थना है। जो भी ये अपनी क्षमता से सीखे इसे सीखने दे। दूसरों से इसका मुकाबला ना करें। बाकी अभ्यास मै घर पर करा दूंगी।"

मैडम -" आप चिंता मत करो!! सब बच्चों की सीखने कि गति अलग है। ये भी सीख जाएगा। इसलिए हमने कोई मार्किंग स्कीम भी नहीं रखी हमारे स्कूल में। अभी सब सीख रहें, इन्हे ऐसे ही सीखने दें।"

शालिनी अब निश्चिंत हो गई थी , धीरे धीरे बच्चा 10 साल का हो गया। स्कूल के स्पोर्ट्स डे में दादी और मां के साथ गया।

शालिनी के बेटे ने भी रेस में भाग लिया था। पर वो जीत नहीं सका।

पवित्रा जी कुछ कहती इससे पहले शालिनी ही बोल पड़ी -" बहुत बढ़िया बेटा!! अच्छा प्रयास था। और मेहनत करते रहो।"

बेटा -" क्या बढ़िया मम्मा! मैं तो जीत भी नहीं पाया।"

शालिनी -" बेटा!! जीतना जरूरी नहीं। जीतने का प्रयास करना जरूरी है। प्रयास करते रहोगे तो जीत भी जाओगे। चलो आज तुम्हारे इस अच्छे प्रयास के लिए तुम्हारी पसंद का केक बनाऊंगी।"

बेटा -" वाह मम्मी!! थैंक यू!! मैं मेरा बैग लेकर आता हूं अभी!"

पवित्रा -" कब तक बहलाती रहोगी बच्चे को!! बचपन से ही कमजोर है आगे भी ऐसा ही रहेगा। दूसरों के बच्चों को देखो । कैसे होशियार है हर चीज में।"

शालिनी -" वो दूसरों के बच्चे है, उनके मां बाप अलग है। उनके दादा दादी भी अलग हैं। बच्चे के घर का माहौल भी अलग है। तो बच्चे भी अलग ही होंगे। मेरा बेटा कोई रेस का घोड़ा नहीं है कि हर बार मुकाबले में उतरे तो बस जीत ही जाए।

अपनी मेहनत करेगा और करता रहेगा। "

पवित्रा जी आज दूसरी बार बहू से ताना सुनकर चुप हो गई।

शालिनी -" आ जाओ बेटा !!चलते हैं घर। चले मम्मी जी!!"

पवित्रा जी ने पोते की पीठ थपथपाई और गाड़ी में बैठकर घर के लिए रवाना हो गए।

जब मोर तैर नहीं सकता, मछली उड़ नहीं सकती तो हमारे बच्चे भी एक जैसे नहीं हो सकते। उनको जन्म देने वाले मां बाप अलग अलग है। तो उनकी क्षमताएं, गुण, आदतें भी तो अलग होंगी।

कभी भी किसी को ये हक मत दो कि आपके बच्चे को वो एक मुकाबले की चीज समझे। ना खुद अपने बच्चे को किसी से कम या ज्यादा समझो। बच्चे हैं रेस के घोड़े नहीं की बस जीत के लिए ही दौड़ेंगे।


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