Meera Ramnivas

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गोंद के लड्डू

गोंद के लड्डू

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      सुखिया चाची और मौहल्ले की बहू देवकी सुबह पानी भरने आईं। नल पर पानी भरते हुए दोनों बतियाने लगी। चाची की बहू का नौवां महीना चल रहा है। देवकी ने चाची से सवालों की झड़ी लगा दी। 

  चाची !"बहू की डिलीवरी कब है, कब दादी बन रही हो, जापे में बहू को खिलाने के लिए कितने किलो घी, गुड, गोंद के लड्डू खिलाने वाली हो।

      देवकी के सवाल सुन कर चाची बोली" देख देवकी! सीधी सी बात है, जो बहू ने पोता जनौ तो चार किलो घी के लड्डू खिलाऊंगी और जो पोती जनी तो किलो भर घी गौंद के लड्डू खिलाऊंगी"।

    "पर चाची ऐसा भेदभाव क्यों? ऐसे तो जच्चा बच्चा दोनों को नुकसान होगा। बच्चे को ज्यादा दूघ नहीं मिलेगा, बहू के शरीर को ताकत न मिलेगी" देवकी ने कहा।

   " लड़की की जात को ज्यादा दूध पीकर क्या करना है। कमजोर रहे अच्छा है जल्दी बड़ी तो न होगी। बहू का क्या है, खूब मोटी ताजी पड़ी है। क्या कमी है घर में", चाची हाथ नचाते हुए बोली।

    देवकी लड़का और लड़की के इस भेदभाव के गणित को सुनकर बोली, चाची तुम भी तो लड़की थीं। फिर भी भेदभाव ? जीवन भर सारा सारा दिन काम करने और बच्चा पैदा करने के लिये बहू बेटी को भी अच्छे खान पान की जरूरत होवै है कि नहीं?

   हमारे यहाँ तो ऐसो ही रिवाज है, मेरी सास ने भी मोको जाही तरीका थी खवायो हतो। चाची बोली।

    चाची, खिलाओगी तो ही अगली दफा स्वस्थ पोता पैदा होगा। ये मत भूलना।

   सुखिया चाची देवकी की बात पर गौर करते हुए , मटका लिए घर की तरफ चल पड़ी।

          


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