गँवार बहू
गँवार बहू
दुर्गावती जी को तीन बेटे हैं। बड़े बेटे का शादी गाँव मे की।गाँव मे शादी करने पर उनकी सहेलियाँ मजाक उड़ाती ।सब कहती अब तो दुर्गा गाँव की गँवई बहू से सेवा करवायेगी।गाँव का चीनी वाला मिठाई खायेगी हमें भी खिलायेगी।खैर जैसे तैसे शादी हुआ।गँवई बहू आ गई।
गँवई बहू गौरी नाम के अनुसार ही गँवार हैं ।उसे किताब पढ़ने के अलावा कुछ नहीं आता हैं।वह गाँव मे रहकर किताब ही पढ़ा करती।गौरी जब ससुराल आई तो दुर्गा जी ने उसे किचेन की जिम्मेवारी देकर छुट्टी पा ली।दिन भर सहेलियों से बतियाती ,किटी पार्टी करती और बहू पर हुकुम चलाती।गँवई बहू गौरी को न खाना बनाने का ढंग आता।ना ही साड़ी पहनने का ढ़ंग आता। गौरी भी तेज सासुमाँ दुर्गा जी के चलते जितनी जल्दी हो सका किताब छोड़कर खाना बनाना ,घर चलाना सीखा।
खैर, किसी तरह पाँच साल बीता।दुर्गा जी का मंझला बेटा शादी लायक हो गया।दुर्गा जी ने इस बार होशियारी दिखाते हुये शहरी बहू का चुनाव किया।शहरी बहू शिल्पा सुंदर और चतुर नारी है। सास -ससुर ,ननद-देवर,जेठ-जेठानी को कैसे खुश रखना,कैसे बतियाना है?सब उसे पता है।वह आते ही ससुराल मे अपना जादू चला दी।छोटा देवर कहता...... "भाभी,आप ही मेरी प्रिय भाभी हो।" तब नैन मटकाते शिल्पा कहती..."मैं प्रिय भाभी हुँ तो दीदी क्या हैं?"तब देवर कहता...."वो तो बस काम करने वाली हैं।"
गौरी देवर की बात सुनकर चुपचाप अपने किताबों में मुँह छिपा कर रो लेती।फिर, अपने काम मे लग जाती।शिल्पा सास-ससुर की भी चहेती हैं।शिल्पा जैसे चाहती वैसे दुर्गा जी करती।शिल्पा दुर्गा जी की प्रिय बहू बनती जाती।अब, दोनों सास -बहू यानी दुर्गा जी और शिल्पा सबसे छोटे बेटे चंदन के लिये छोटी बहू देख रही हैं।
दुर्गा जी गौरी को छोटी बहू नहीं दिखाने ले जाती।बड़ी बहू गौरी को साथ ले जाना नाक कटाने के बराबर हैं क्योंकि वह तो गँवार हैं।दुर्गा देवी बड़ी बहू गँवार बहू लाई।मँझली बहू शहरी बहू लाई।अब आगे के ब्लॉग मे पढियेगा कि दुर्गा जी छोटी बहू कैसी लाई?