देहाती
देहाती


“समधन, अपनी छंटी हुई बेटी को मेरे लिए ही रखा था क्या ? कहाँ मेरा बेटा सूट-बूट और टाई में और कहाँ आपकी बेटी सीधी साड़ी और भर-भर हाथ चूड़ी में ! कोई तुलना ही नहीं है, एक पूरब तो दूसरा पश्चिम। ऐसा लगता है जैसे आपने बेटी को बाहर की हवा लगने ही नहीं दी ...जाहिल, देहाती–गंवार ! इसीलिए मेरा बेटा पत्नी के संग बाहर जाने के लिए कभी तैयार ही नहीं होता है। ”
बेटे की माँ होने का बर्चस्व दिखाते हुए ...वह घर आई समधन पर बरस पड़ी। ”आपको और भी कुछ कहना है?” बेटी की माँ ने पान चबाते हुए आहिस्ते से पूछा।
“सत्य बात तो इसी तरह तीखी लगती है समधन जी। अपनी देहाती बेटी को मेरे बेटे के गले में बाँध दिया तो जन्म भर सुनना ही पड़ेगा ना ?”
“हाय दैया.. ऐसा क्यूँ कह रहीं हैं ?!मेरी बेटी की तस्वीर रोज अखबारों में छपती है सो आपको नहीं दिखती ? आप ही बताइए, अखबार में तस्वीर ऐसे ही निकल जाती है क्या ?”
“हुंह.....यह कोई बड़ी बात नहीं है। एक शांता दीदी हैं, जो फेसबुक में किस्से का ग्रुप चलाती हैं। उसी ग्रुप में आपकी बेटी....वही सास, नन्द, दियादन का झूठ-सच किस्सा पोस्ट करने में हमेशा बेहाल रहती है। फेसबुक क्या हुआ ! फुइस बुक (झूठ बुक) हो गया !” बेटे की माँ उल्टा पल्ला झाड़ते हुए बोली। “
बेकार में आप चिंता करती हैं ! देखिएगा, एक दिन मेरी यही देहाती बेटी आपको तीजन बाई और गंगा देवी की तरह देश-विदेश घुमाएगी। मालूम है ना...देसी गाय के दूध में जितनी ताकत होती है उतनी हृष्ट–पुष्ट विदेशी ‘जर्सी’ गाय में नहीं ?!”
बेटी की माँ ने चुटकी लेते हुए जवाब दिया। “इतना सुनने का साथ ही बेटे की माँ का तना चेहरा एकाएक टूटे ताले की तरह लटक गया। गिरगिट की तरह रंग बदलकर उसने जीभ लपलपाते हुए तपाक से कहा ,” हाँ हाँ ...समधन, अब यही आशीर्वाद दीजिए अपनी देहाती बेटी को !”