बाँस की डलियाँ - २
बाँस की डलियाँ - २
बम्बारी छोड़ उस गाड़ी के पीछे पड़ गया वह।बेवज़ह, गाड़ी में बैठे ड्राइवर की ओर तानी हुई राइफ़ल में से पहली दो गोलियाँ नेम प्लेट और रियर व्यू मिरर पर लगी। गुस्से से बेकाबू हो तीसरी गोली का लक्ष्य साधा गया उससे। जो डायरेक्ट ड्राइवर के सिर के आरपार होकर गुजर गई।
गुल वहीं पर ढेर हो गई। रक्त के फव्वारें फूट पड़े। और गुल स्टियरिंग पर गिरी। गाड़ी इम्बेलेन्स हो गई। और रोड के दूसरी तरफ तीन बार गाड़ी टम्बल खाकर ब्रिज की रैलिंग को तोड़ते हुए हवा में ही लटकी रही।रात के तकरीबन पौने तीन के करीब हॉर्न की तीखी आवाज़ ने चौराहे से 200 मीटर की दूरी पर आये इलाके को अमावस्या के अंधियारे से रोशनाई में तब्दील करने लगा।हर दूसरे घर की लाईट झगमगाने लगी।कुछ तो नीचे भी उतर आए। उस अलार्म क्लॉक सी हॉर्न की तीखी आवाज़ को बंद करने के वास्ते।
किसीने पुलिस स्टेशन का 100 नंबर भी डायल कर दिया होगा। जिसके चलते पुलिस के आने तक गाड़ी के इर्दगिर्द भँवरे से मँडराते लोगों का ताँता लगा रहा। पर किसी में भी इतनी हिम्मत न थी कि, गाड़ी के पास जाकर ड्राइवर की सीट पर बैठे इंसान को बचाने की सोचें।और पुलिस वेन की सायरन की आवाज़ कानों में पड़ते ही वो ताँता एकदम से बिखरने लगा।
पुलिसकर्मियों ने गाड़ी को क्रेन से ब्रिज पर उतारा गया। उसके बाद ड्राइवर वाली सीट का दरवाजा खोलने का जीतोड़ प्रयास किया। और दूसरी ओर बम स्क्वॉर्ड के ऑफिसर्स ने गाड़ी की डिक्की से लेकर उसके नीचे भी तहकीकात की। कहीं कोई बम तो नहीं फिट किया गया!ड्राइवर की सीट पर की डेडबॉडी को पोस्टमार्टम के लिए फोरेंसिक लैब में भेज दिया गया।पंचनामा करनें के बाद पुलिसकर्मियों ने गाड़ी के इर्दगिर्द का ब्रिज वाला इलाका सील कर दिया।
खिलेश भत्तों, वैसे तो क़भीकभार ही अपने काम को अंजाम देने के बाद उस जगह पर अड़ा रहता।उसका मानना था कि, 'काम तमाम किया, डलियाँ लगा दी कि, वो जगह छोड़ देने की।' पर इस बार वो खुद भी नहीं जानता था कि, वो वहाँ पर क्यों जमकर बैठा था!और शायद इसी वजह से उसके पकड़े जाने के चांसिस बढ़ सकते थे।
थाठ शहर में सुबह होते होते हंगामा मच गया।डेड बॉडी की शिनाख़्त कर ली गई थी।न्यूजपेपर्स की हेडलाइन्स में वो न्यूज़ प्रूफरीडर गुल यादव सुर्ख़ियाँ बटोर रही थी।अब तक पर्दे के पीछे रहकर सबकी न्यूज़ की प्रूफरीडिंग करने वाली आज खुद न्यूज़ बनकर देशभर में छाई हुई थी।पहलेपहल जो देखा गया, उसके आधार पर डिवाईडर तोड़कर गाड़ी इम्बेलेन्स होकर तीन बार पलटी मारने से एक्सीडेंट हुआ रहा होगा। और उसी एक्सीडेंट में गुमनाम सी न्यूज़ प्रूफरीडर गुल यादव की मौत हुई होगी।ये प्रिंट हुआ। किसी आपसी रंजिश का शिकार हुई होगी। ऐसा अनुमान लगाया जाने लगा था।
लेकिन, फोरेंसिक जांच के बाद जो सच सामने आया। उसे जानने के बाद लोकल पुलिस के साथ मिलकर सीबीआई टीम को ये हाई प्रोफाइल केस सौंपा गया।गुल यादव के लैंडलाइन फोन के रेकॉर्ड्स चेक किये गए। उसके पेरेंट्स से भी बारी बारी से मीटिंग्स रची गई। फिर भी कोई सुराग हाथ नहीं लगा।
उल्टा, रात के सवा दो बजे आखरी बार गुल ने अपने बाबा से ऑफ़िस से निकलने से पूर्व फोन पे बातचीत की थी कि, 'देशभर में हो रहे बम्बारी की न्यूज़ की प्रूफरीडिंग करने में थोड़ा वक्त लग गया, पापा। और वो ऑफिस की गाड़ी से न निकलकर खुदकी गाड़ी में घर लौटेगी। तो थोड़ा वक्त ज़्यादा लगेगा। फिक्रमंद न हों।तीस मिनिट में घर पर ही मिलेगी। और फिर सरप्राइज गिफ्ट का मज़ा लेते हुए साथ में बर्थडे सेलिब्रेट करेंगें।'गुल यादव के पापा के कहे अनुसार, तीस मिनिट में घर लौटने वाली बेटी के बदले उसकी बर्थडे पर उसकी मौत की खबरें लैंडलाइन पर बारी बारी से आने लगी।
"जो अब तक ख़त्म नहीं हुई।" गुल की माँ ने टीवी स्क्रीन से अपनी नज़रे हटाये बगैर ही बयान दिया।मौका -ए- वारदात पर 100 मीटर के अंतराल में खड़े सभी विट्नेसिस से पूछताछ जारी रखी गई। उसी बीच खिलेश भत्तों ब्रिज के नीचे से फ़रार हो गया।
कमसीन न्यूज़ प्रूफरीडर गुल यादव उसका टार्गेट थी जरूर। लेकिन, कुछ और ही तरीके से उसका काम तमाम करना था उसे। वो भी अगर वो लिव इन में नहीं रहेती तो।
और तो और उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि, जिस गाड़ी को वो अपनी रडार में शूट करने जा रहा था। उसमें ड्राइवर की सीट पर उसका मनपसंद टार्गेट ही बैठा हुआ था।