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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

4  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Children Stories Inspirational

बालिका मेधा 1.23

बालिका मेधा 1.23

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वास्तव में जब मम्मा ने मुझे, पीयूष से मित्रता करने कहा था। उसके बाद से मैं अपने टिफिन में कुछ अधिक मात्रा में सामग्री ले जाने लगी थी। लंच ब्रेक में मैं पीयूष से साथ खाने का आग्रह करती थी। शुरुआत में उसे शंका होती कि उससे घनिष्टता बढ़ाने का मेरा प्रयोजनक्या है। फिर जब कुछ दिन हुए तो मैं अपने अभिप्राय में सफल हुई थी। 

मेरी पूर्व सखियों एवं उसकी पहले से फ्रेंड से अधिक, हम अब आपस में दोस्त हुए थे। पीयूष मुझसे खुलकर बातें करती थी। वह मैथ्स टीचर को अभी नहीं भूली थी। उसने बताया कि किसी किसी बहाने से जब वह उनके पास जाती तो, वह उसे टाल देते और कहते कि पीयूष का उनके पास आना अच्छा नहीं। पीयूष मुझे बताती कि उसे मैथ्स टीचर की ऐसी रुखाई अच्छी नहीं लगती है। 

मैं उसे कहती कि मैथ्स टीचर को शायद अपनी नौकरी की चिंता रहती है। तुम मिलने की कोशिश कर उनकी कठिनाई बढ़ाती हो। तुम ऐसा न किया करो। हो सकता है वे अधिक ज़रूरतमंद  हों और यह नौकरी उनके लिए अनिवार्य हो। मेरी बात सुनकर पीयूष विचारों में पड़ती प्रतीत होती थी। 

एक दिन वह अधिक दुखी थी तो मैं उसे स्कूल में सबसे दूर ले जाकर अकेले में उसे समझाने का प्रयास कर रही थी। पीयूष ने मुझसे कहा -"मेधा क्या मैं करूँ, मुझे तो उनसे प्यार हो गया है और वे ज़माने की परवाह करते हुए मुझसे दूरी रख रहे हैं।" 

मैंने कहा - "पीयूष यह तुम्हारा भ्रम है। यह प्यार नहीं है, टीचर तुम्हें अच्छे लगे थे इसलिए तुम उनकी ओर आकर्षित हुई थी। देखना कुछ दिनों में तुम उन्हें भुला सकोगी।"

पीयूष ने पूछा - "तुम ऐसा कैसे कह सकती हो, तुम्हें मेरे दिल की हालत पता नहीं है।" 

मैंने कहा -" मैं तुम्हारे दिल की जानती हूँ। यही नहीं मैं सभी किशोरों के दिल की जानती हूँ। "

पीयूष दुखी थी फिर भी हँस पड़ी थी। उसने पूछा - "मेधा तुम अभी इतनी बड़ी नहीं कि सबके दिल का हाल जान सको।" 

मैंने कहा - "मैं बड़ी नहीं मगर इस बारे में अपनी मम्मा से सब समझती / जानती हूँ। "

पीयूष एकाएक सकपका गई। उसने पूछा - "मेधा क्या तुमने टीचर एवं मेरी बातें, अपनी मम्मा से कहीं हैं?"

मैंने यहाँ झूठ कहना उचित समझा, मैंने कहा - "नहीं पीयूष, तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो। असल में हमारी सोसाइटी में एक लड़की-लड़के में ऐसा कुछ हुआ था। तब उन्होंने मुझे एक फ्रेंड की तरह सब समझाया था।" 

अब पीयूष आश्वस्त हुई थी। उसने कहा था - "मेधा मेरी मम्मा भी ऐसी ही बातें करतीं हैं। यह स्वाभाविक भी है। मम्मा हमसे 30 वर्ष पुरानी पीढ़ी की हैं। वे आज की बातें नहीं जानतीं। खैर छोड़ो भी अब, जब टीचर ही मुझसे बचते हैं तो मुझे समझना होगा। उनके बिना जीने की आदत बनानी होगी। "

मैंने कहा - "यह तुम सही कहती हो पीयूष।" 

फिर ब्रेक खत्म हुआ था। हम क्लास में आ गए थे। स्कूल से घर आते हुए मैं सोच रही थी कि मैथ्स टीचर पर चैप्टर तो खत्म हो जाएगा मगर यह कैसे किया जाए कि पीयूष किसी और के चक्कर में उलझने से बच पाए।

मैंने अपनी मम्मी से पीयूष से हुई सभी बातें बताईं थीं। मम्मी ने मुझसे कहा -" यह अच्छा है पीयूष अब तुम्हारी फ्रेंड है। उससे अब मुझे भी बात करनी होगी। यह उस तरह से करना होगा कि उसे संदेह नहीं हो, तुमने मुझे उसकी बताई है। वरना वह तुमसे दूर हो जाएगी जो ठीक नहीं है। "

मैंने सोचते हुए पूछा - "मम्मा फिर हमें क्या करना चाहिए? "

मम्मा ने कहा - "किसी तरह से मुझे पीयूष की मम्मी से दोस्ती करनी होगी। मैं अब सोचती हूँ यह कैसे होगा।" 

इस बात के कुछ दिन बाद हमारे स्कूल में वार्षिक खेलकूद हुए थे। मैं टेबल टेनिस विजेता हुई थी। पीयूष ने 100 मीटर्स रैस जीती थी। स्पोर्ट्स के अंतिम दिन के खेल के बाद प्राइस डिस्ट्रीब्यूशन होना था। मुझे बातों में पता हुआ था कि उस समय पीयूष की मम्मी, स्कूल आएंगी। मैंने यह मम्मा से बताया था। 

मम्मा ने खुश होकर कहा - मेधा यह उनसे मिलने का अच्छा अवसर है। ऐसा करती हूँ, मैं भी उस दिन आफ्टर नून की लीव (दोपहर बाद की छुट्टी) लेकर स्कूल आती हूँ। मैंने प्यार से मम्मा का ताना मारा -" वाह्ह मम्मा, मेरे लिए तो आपको स्कूल आने में बड़ी कठिनाई होती है और पीयूष के लिए आपको उतावली हो रही है।" 

मम्मा ने हँसकर कहा -" मेधा, मुझे तुमसे अधिक पीयूष से प्यार है। "

मैं समझ गई मम्मा मुझे चिढ़ाना चाहती हैं। मैंने अपने हाथ मम्मा के गले में डालते हुए कहा - "मम्मा, झूठ, सफेद झूठ! मेरी मम्मा तो संसार में सबसे अधिक मुझसे प्यार करती हैं। "

कहते हुए मैंने मम्मा के गालों पर चूम लिया। मम्मा ने भी मेरे गालों को चूमा फिर कहा - "जब तुम यह जानती हो तो तुमने ऐसा क्यों कहा। "

मैंने कहा - "चलो हटो मम्मा, मुझे और चिढ़ाओ मत मैं जानती हूँ, आपको पता है कि मैंने वह मजाक में कहा था। "

प्राइस सेरेमनी में पीयूष और मैं अपने अपने पुरस्कार ले रहीं थीं। तब दर्शक दीर्घा में आंटी (पीयूष की मम्मी) और मम्मा साथ बैठकर बातें कर रहीं थीं। ग्राउंड से अपने प्राइस लेने के बाद पीयूष और मैं, उन दोनों के पास गए तब हम दोनों से खूब प्यार किया था। 

मम्मा ने पीयूष को अपनी गोदी में बैठाया था। इस तरह से बैठाए जाने से पीयूष लजा रही थी तब मुझे मम्मा का प्रयोजन समझ आ रहा था। वे मेरी तरह ही पीयूष को अपना दोस्त बनाना चाहती थीं। स्कूल से लौटते हुए कार में मैंने कहा - "मम्मा क्या यह जरूरी था कि आप पीयूष को गोदी में बैठाओ? देखा नहीं वह कितना शरमा रही थी।" 

मम्मा ने कहा - "मेधा, मैं स्वयं को रोक नहीं पाई थी। उस पर मुझे बहुत प्यार आ रहा था। उसके पापा, हमारी रक्षक, भारतीय सेना में हैं।" 

मैंने पूछा - "क्या हैं, उसके पापा?"

मम्मा ने कहा - "पवित्रा जी से बात अधूरी रही है। मैं आगे की कभी पूछूँगी, उनसे।"

(क्रमशः)


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