बिखर जाने दो "कुछ को" यूं ही रेत सा , बिखर जाने दो "कुछ को" यूं ही रेत सा ,
तुम्हारे बिना ज़िन्दगी है क़यामत कहाँ अब इनायत तुम्हारी मिलेगी तुम्हारे बिना ज़िन्दगी है क़यामत कहाँ अब इनायत तुम्हारी मिलेगी
या पाएँगे नभ खुद के अब न कोई भय को सहेंगे या पाएँगे नभ खुद के अब न कोई भय को सहेंगे