काजल भरी ये अमावसी आँखें, काजल भरी ये अमावसी आँखें,
लताएं कुमुदिनी की कर रही हार-श्रृंगार हे शिवा!! तुम प्रकृति मैं शिव,करुं तुम्हारा श्रृंगार लताएं कुमुदिनी की कर रही हार-श्रृंगार हे शिवा!! तुम प्रकृति मैं शिव,करु...
'बुलाते हैं धतुरे के वो फूल, धागों की डोर, बाबा धाम को जाने वाले रास्ते, गंगा तट पर कांवरियों का कोल... 'बुलाते हैं धतुरे के वो फूल, धागों की डोर, बाबा धाम को जाने वाले रास्ते, गंगा तट...
ओ मेरे शिव !! तेरी महिमा अपार !! ओ मेरे शिव !! तेरी महिमा अपार !!
मेरे गुरू नाटककार ड. केश रंजन प्रधान जी के लिये समर्पित यह कविता । मेरे गुरू नाटककार ड. केश रंजन प्रधान जी के लिये समर्पित यह कविता ।
एक कुटुम्ब रखना है हमें पूरी वसुधा को। रक्षक-रक्षित बन करें सबका ही अभिनंदन। एक कुटुम्ब रखना है हमें पूरी वसुधा को। रक्षक-रक्षित बन करें सबका ही अभिनंदन।