श्रावण
श्रावण
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मैं प्रकृति तुम सावन
बरसे मेघ भीगे हम-तुम
हरियाली चूनर
पायल बूंदों की
बदरा कारे, कजरारे नयन
सिंदूरी सांझ ने
लहराया आंचल
तरुवर सरोजिनी
तुम्हारी चितवन
ये पावस की सुनहरी बूंद
माथे की चमचमाती बिंदी
लताएं कुमुदिनी की
कर रही हार-श्रृंगार
हे शिवा!! तुम प्रकृति
मैं शिव,करुं तुम्हारा श्रृंगार
इस चैतन्य श्रावण को समझो मेरा उपहार।