सावन की पुकार
सावन की पुकार
बुलाते हैं धतुरे के वो फूल, धागों की डोर
बाबा धाम को जाने वाले रास्ते,
गंगा तट पर कांवरियों का कोलाहल,
बोल - बम का उद्गघोष।
मदद को बढ़ने वाले स्वयंसेवियों के हाथ,
कांवर की घंटी व घुंघरू,
शिविरों में मिलने वाली शिकंजी,
उपचार के बाद ताजगी देती चाय।
पुरस्कार से लगते थे पांव में पड़े फफोले
यात्रा से लौट कर मित्रों को संस्मरण सुनाना
लगता था सावन सा सुहाना
यूं तो लंबित पड़ी है अपनी कांवड़ यात्रा।
लेकिन कायम है यादों की पुकार का कोलाहल,
क्योंकि मैने भी की है अनगिनत कांवड़ यात्राएं,
शरीर में शक्ति रहने तक थी यात्रा कायम रखने की इच्छा,
लेकिन शायद नियति को नहीं था यह मंजूर।
कांवड़ यात्रा पर चल रहे विवाद से दुखी है आत्मा,
क्योंकि सावन का शुरू से था,
हमारे लिए अलग अर्थ
श्रावण यानी शिव से साक्षात्कार का महीना।
सचमुच कांवड़ यात्रा पर हो रहे विवाद से,
दुखी है मन न जाने अचानक ऐसा कैसे हुआ
अंतिम यात्रा तक कुछ अगंभीर कांवरिये
तो देखे थे मैने।
लेकिन हुड़दंगी कभी नजर नहीं आए
फिर अचानक कैसे बदल गया परिदृश्य
सोच कर भी दुखी है मन - प्राण
निरुत्तर से हैं मानो भगवान।