अपना आशियाना बनाते नज़रों से दूर सितारों में बस जाते। अपना आशियाना बनाते नज़रों से दूर सितारों में बस जाते।
कभी खुशी कभी गम, रंग बदलती हैं जिंदगी, एक अनजाने सफर में। कभी खुशी कभी गम, रंग बदलती हैं जिंदगी, एक अनजाने सफर में।
कर्म को बली करो, भेद लो चक्रव्यूह उस जीत का फिर,क्या कहना होगा। कर्म को बली करो, भेद लो चक्रव्यूह उस जीत का फिर,क्या कहना होगा।
यह कैसी आजादी ? कैसा विकास ? लोकतंत्र के आड़ में अब तानाशाही उभर रही हैं...! यह कैसी आजादी ? कैसा विकास ? लोकतंत्र के आड़ में अब तानाशाही उभर रही हैं...!
पहचान मुझे तुम क्या दोगे मैं ख़ुद अपनी पहचान हूँ, पहचान मुझे तुम क्या दोगे मैं ख़ुद अपनी पहचान हूँ,