जिधर चाहो उधर नाव पतवार करने की , द्रोण को अब अगूंठा न देना है ! जिधर चाहो उधर नाव पतवार करने की , द्रोण को अब अगूंठा न देना है !
प्राचीन को नवीन बनाओ प्रगतिशील संवेदनशील बनो। प्राचीन को नवीन बनाओ प्रगतिशील संवेदनशील बनो।
बचपन की यादों और जवानी के दिनों का बसेरा होता है यूँ तो पीढ़ियां बदल जाती है मगर अपना घर अपना होता ... बचपन की यादों और जवानी के दिनों का बसेरा होता है यूँ तो पीढ़ियां बदल जाती है मग...
उदास पेड़ शाम राह देखते पंछी आ बैठे।। ~~~~~~~ कोयल कूक विलुप्त प्राय अब कान तरसे।। उदास पेड़ शाम राह देखते पंछी आ बैठे।। ~~~~~~~ कोयल कूक विलुप्त प्राय अब का...