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Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Abstract Inspirational

4  

Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Abstract Inspirational

यह खुला दरवाजा

यह खुला दरवाजा

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मत रो ! देख !! खुला दरवाजा !!!

यह खुला दरवाजा! वह खुला दरवाजा!

मिलने वालों की उम्मीद की एहसास है।

याचक की आश है, चाहे दिल-दिमाग,

मन या घर खिड़कियों की हो, दरवाजे,

समय पर खोल - देख किसकी दस्तक है।

नई ताजगी, नई उमंग, नई बातें ,

और नई खुशियों की दीदार कर।

अच्छी लगे तो मिलकर-खुलकर जी।

और इस धरा पर ,जीवन का आनंद ले।

जीवन में नव-प्राण का संचार कर।

जीवन के रंग बहुतेरे और भी है।

मिलकर उनसे, आंखें चार कर।

मत रो-खींझ-उदास हो ,देख !

और भी, बहुत कुछ है जग में ,

उसे स्वीकार कर।

बच्चों की तरह जिद न कर ।

क्यों बैठ कर रो रहा मन फेर ?

दिल-दिमाग को डायवर्ट कर।

आशा की किरण ही नहीं ,

आशा पुंज को तेरी इंतजार है।

बस आंखें खोलकर देख, मुस्करा !

अपने परमपिता के उपहारों का,

बेटा ! आनंद ले ,जी भर रास कर ।

गर मिले नहीं खुशियां ,फिर कहना,

देखो ! कितनों की सदा परवाह है तेरी,

कम से कम अपने आप परविश्वास कर।

आंख-कान-मुंह-दिल-दिमाग,

और मन के दरवाजे अब खोल।

देख ! दुनिया कहां जा रही,

तुम केवल कल में खोए न रह, सुन !

सबकी बातें विचार कर,

सभी तेरे दुश्मन नहीं,

मुंह खोल अपनी बात रख ।

जो चाहो तुम इजहार कर,

पर यदि कोई सहमत न हो,

तुम्हारी सारी बातों से फिर ,

मत होना उदास ।

अंदर बाहर से मुस्कुराकर ,

सब को स्वीकार कर,

खोल दरवाजे मन-दिल-दिमाग का,

खुद को खुद भी समझा,

शांति से विचार कर,

समझा अपने भोले-भटके मन को,

खुद पर विजय की पुण: प्रयास कर।

नई सुबह को सदा ही इंतजार है तेरा,

बाहर निकल, गम की अंधेरी दुनिया से,

न सकुचा ,बस दूर से ही देख कर।

बाहें फैला, गले लगा ,खुशियां मना।

जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर।

छोड़ दे बुराइयां, बिना पल गवाएं,

अब न उल्टे सीधे विचार कर,

थाम ले अच्छाइयों का दामन,

बिना देर किए,

न उसमें कोई कमी तलाश कर।

न बंदकर सभी दरवाजे ऐसे,

रख खुला सब दरवाजा !

दस्तक -आहट का भी पता चले,

इतनी गहरी नींद में न सो, सतर्क रह,

सुन घंटी-दस्तक बाहर निकल ,देख!

किस-किस को तेरा इंतजार है!

समझ ! तुझे कमी नहीं किसी चीज की,

देख तुम कितनों की आश- विश्वास हो।

हरि ओम् !



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