Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

विनोद महर्षि'अप्रिय'

Others

3  

विनोद महर्षि'अप्रिय'

Others

यादों की संदूक

यादों की संदूक

1 min
721


आंगन के कोने में संदूक एक खाली सी है

जब भी देखो कुछ कहती है

शायद इशारा करती है वृद्ध पिता की कोठरी का

टूटी सी चारपाई, फटी सी एक रजाई है।

वर्षो की मेहनत से थका शरीर है

एक उम्मीद को तरसती धंसी आंखे है।

उस तरफ आशाओं का तमस है

बाहर आंगन में गूंजती किलकारी है

बाहों में न खिला सकते बच्चों को ,

कैसी यह लाचारी है।


कुछ वो कह ना पाते है,

जो हमे जीना सिखाते है।

एक कोने में वृद्धा लेटी हुई,

ओढ़े चादर फटी हुई।

जिस मां के लाड़ से पले असंख्य कान्हा

वो अब एक निवाले को तरसती है

जिसकी बाहें कभी न थकी,

वो अब है तन्हा ।


खोलो कभी कोने की उस संदूक को,

जिसमे तन्हाई का क्रंदन है

बेबसी है, लाचारी है।

तेरी शैतानियों की कई यादें है,

जहां कभी खुशी के आँसू रहते थे,

आज दुख और अभावों का सूनापन है।

याद कर जिसे तू अनदेखा कर रहा है,

वो ही तेरा अनमोल बचपन है।।


Rate this content
Log in