व्यथा प्रेम की
व्यथा प्रेम की
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यह चित्र दर्शा रहा एक प्यारी नारी ,मुखमंडल शांत,गंभीर ज्यों चाँद की चकोरी ,
मृगी नयन,गौर वर्ण ,सुडौल है काया
श्वेत धवल,है श्यामल केश,चुनरी ओढ़े सतरंगी
है प्रिय सखा हंस ,जिसको
सुना रही व्यथा वो अपनी
जैसे तुम को प्रिय यह मोती की माला ,
वैसे प्रिय मुझे वो राजन
संदेश दूर से उनके लाते ,
पराक्रम ,गुणों की खान बताते
तुम सखा हो मेरे प्यारे ,
संदेश मेरे नहीं सुनाते
कह दो जाकर अब तुम
यह चित कहीं नहीं लगता है
मन दिन भर उनमें रमता है
आ जाए बारात वो लेकर
बना लें अपनी रानी ।
प्रंसग यह याद दिला रहा
कहानी कोई पुरानी, पात्र जिसके
राजा नल और रानी दमयंती ॥