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मिली साहा

Children Stories Tragedy

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मिली साहा

Children Stories Tragedy

वो स्कूल के दिन

वो स्कूल के दिन

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घड़ी में देखा बजे थे आठ,

मम्मी से आज पड़ेगी डांट,

छूट जाएगी स्कूल की बस,

स्कूल में लेक्चर मिलेंगे दस,


कहाँ मेरा बैग है कहाँ मेरा टिफिन,

स्कूल में टेस्ट का भी आज है दिन,

नहीं गया तो टीचर कर देगी फेल,

फिर मिलेगी वो पनिशमेंट की जेल,


डर के मारे जब आँख खुली मम्मी जगा रही थी,

मोबाइल हाथ में दे, स्कूल शुरू हुआ कह रही थी,

मोबाइल क्यों पहले कुछ बात समझ में ना आई,

फिर याद आया, इसी में होती अब हमारी पढ़ाई,


शायद देख रहा था सपना कोई स्कूल था अपना,

कितने अच्छे दिन थे वो, कितना अच्छा ज़माना,

पर इस कोरोना ने हमसे छीन लिया स्कूल हमारा,

एक डब्बे में कैद हुआ स्कूल की मस्ती का पिटारा,


कितनी हलचल रहती थी मन में, स्कूल जाने की,

एक अलग ही उमंग रहती थी दोस्तों से मिलने की,

क्लास में बैठकर सबके साथ वो टिफिन का खाना,

कोरोना ने छीन लिया बच्चों से वो खूबसूरत तराना,


एक दूसरे का टिफिन खा कर क्या चटकारे लेते थे,

छुट्टी की घंटी का बेसब्री से इंतजार किया करते थे,

घर तक पहुंंचते- पहुंचते जाने कितनी हो जाती बातें,

मोबाइल जब से स्कूल हुआ कहाँ होती हैं मुलाकातें,


शाम को खेलने की भी हम किया करते थे प्लानिंग,

अब एक ही जगह बैठे-बैठे हो जाती मॉर्निंग, इवनिंग,

कितनी पेंसिलें, इरेज़र, पानी की बोतल खोते थे हम,

बनाते थे कैसे-कैसे बहाने मम्मी की डांट खाते थे हम,


पर घर में कैद कुछ खोने का तो सवाल ही नहीं उठता,

ढूँढ लाती मम्मी पल में, अब वो बहाना ही कहाँ बनता,

ना जाने कब खत्म होगा ये मंज़र कब जाएगा ये साया,

ये चारदीवारी में कैद स्कूल हमें बिल्कुल भी नहीं भाया,


फिर वही सुबह की भागदौड़ फिर वही स्कूल कब होगा,

स्क्रीन पर ही देखते हैं दोस्तों को जाने मिलना कब होगा,

काश! ऐसा जादू हो जाए करो ना यहाँ से गायब हो जाए,

थक चुके मोबाइल स्कूल से हमें पुराना स्कूल मिल जाए।


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