वो शाम
वो शाम
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आज भी याद है,
सर्दियों की वो शाम ,
ठंडक भरी शाम,
कुहासे से भरी हुई,
बार बार ठंडी बहती हवा,
कानों में कुछ कह रही,
साथ में जल रहे कुछ अलाव,
जो दे रहे थे राहत हमें,
माँ उस अलाव में पका रही थी ,
भीनी - भीनी सी जलने की महक,
मन को मेरे भा रही थी,
तभी नजर पड़ी जलते अलाव में,
जहाँ हल्की आंच में पक रहे थे आलू,
वाह क्या खुशबू है,
पके हुए आलू बहुत अच्छे लग रहे थे,
आग में तपकर पक रहे थे,
तभी सबने मिलकर गीत गुनगुनाया,
उस ठंड भरी शाम रंगीन बनाया
आज भी याद है,
सर्दियों की वो शाम...
