वो गलियाँ याद आती है...
वो गलियाँ याद आती है...
वो गलियाँ याद आती हैं
बीती हुई जिंदगी बुलाती है
आँखें बेहद नम हो रही हैं
माँ बाबा याद तुम्हारी सताती है
व्यस्त सड़कों पर दिन तो कट जाता है
पर अक्सर रातें विचलित कर जाती हैं
मैं वो शख्सियत हूँ जिसका
हर लम्हा तुमसे जुड़ा था
बिना तुम्हारे अब तो
साँस भी कहाँ आती है
जमाना रोज़ाना बदल रहा है
पर अक्सर मेरी तन्हाईयाँ
पुराने दिनों मे लौटा ले जाती हैं
किससे कहूँ और कैसे कहूँ
हाल ए दिल अपना
दूर तलक जब भी नजर दौड़ाता हूँ
राहें सूनसान नजर आती हैं
स्मृति पटल पर छाई हैं जो यादें
काश उनसे भरी बातों की चिट्ठी
तुम्हारी दुनिया तक पहुँच पाती
एक पल के लिए ही सही
जिंदगी फिर से खिल जाती
इक झटके से हाथ छूटा मुँह मोड़ लिया
अंजान को अंजान राहों पर
अकेला खड़ा छोड़ दिया...