वो दिन
वो दिन
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भूलें न यादें मुझे,
वो रिमझिम बूँदें,
बारिश की सुहानी
मदमाती सी बूँदें।
जुल्फें थीं तुम्हारी यूँ
काले घने बादल।
बादलों का क्या?
आते थे उमड़-घुमड़
मर्जी तो बरसे वरना
जाते थे मचल-मचल।
वो हाथों में हाथ डाले
हमारा खुली सड़कों
पर घूमना।
घटाओं को देख
हमारा इतराना,
मोरों का नाचना।
क्या नज़ारा था,
कितना प्यारा था
सुहानी यादों का,
आज खुला पिटारा था
काश! वो दिन लौट आते,
काश! वो बादल बरस जाते।