वे फूल... وہ پھول۔۔۔
वे फूल... وہ پھول۔۔۔
कभी उन फूलों पर गौर किया है…
जो किसी औचित्यहीन स्थान पर भी ख़ूबसूरती गढ़ रहे होते हैं…
कभी जंगलों में…
कभी पोखर किनारे…
कभी पगडंडियों पर.. तो कभी…
किसी रेतिली जमीं के छोटे से झुरमुट में…
इन पौधों को बढ़ने व इन कलियों को खिलने में…
कभी खाद-पानी की कमी आड़े नहीं आती…
भिन्न-भिन्न रंगों से सराबोर ये फूल..
सदैव अपनी ही धुन में खिलखिला रहे होते हैं…
यह प्रकृति का अप्रतिम सौंदर्य है..या…
इनके स्वाभिमान की अविचल अटलता…
प्रतिस्पर्धा व द्वेष के कुचक्र से अंजान…
ये फूल स्वयं की स्वाभाविक चंचलता से..
अजनबी चेहरे पर भी मुस्कान बिखेर देते हैं…
इक ओर हम इंसा स्वयं को जानने व अपनी प्रतिभा पहचानने...
जैसी नाकाम कोशिश में तमाम उम्र गुज़ार देते हैं…
पर इन फूलों को अपनी श्रेष्ठता प्रदर्शित करने…
व किसी को छलावे गुणों से रिझाने जैसी नकारात्मक लत नहीं…
शायद इसलिए ही यह स्वयं शक्ति से परिपूर्ण होकर…
इस धरा के निराली आभा में अपना अमिट योगदान देते है।