तू समझ नहीं सकता
तू समझ नहीं सकता
तू रातों में आता तो है
पर बस जताने के लिए
बात करता भी है तो सिर्फ
अपनी बात बनाने के लिए
कभी नींद के नाम पे कहते हो कि
मैं बात नहीं कर सकता और
मैं चाहे कितना भी इंतजार करूँ
पर तू कभी नहीं समझ सकता
दिन के साथ-साथ मैं भी बस
तेरे साथ होने का दावा करती हूं
तू साथ नहीं देता तो कभी कभी
फर्क ना पड़ने का दिखावा करती हूं
और मौका मिले तो तू कहता है कि
मैं ज्यादा बात नहीं कर सकता
मैं कितने बातों को दबाकर रखती हूं
वो तू कभी नहीं समझ सकता
चलो वक्त भी मिल जाता है कभी तो
फिर बातों बातों में झगड़े हो जाते हैं
तुम अपने रास्ते हो जाता है और
हम भी अपने घर को हो जाते हैं
भीड़ में गुम होकर कहते हो कि
मैं अभी फोन नहीं कर सकता पर
मैं तो फिर भी तुझे ही कॉल करती हूं
पर तू कभी समझ ही नहीं सकता
छोड़ो, जाने दो! बातों का समंदर है
वो लहरों के साथ बह जाएगा
बात नहीं करना तो कोई बात नहीं
एक दिन हर बात यही रह जाएगा
