तुम
तुम
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कभी किसी नज़्म में
ढल जाते हो
कभी बन कर ग़ज़ल,
गजब ढाते हो
जब भी लिखती हूं
तुम्हें महसूस करती हूं,
मेरी नज़रों का दोष है
या तुम ही हो जो
हर श्य में नजर आते हो।