टुकड़े
टुकड़े
उसके घर में मेरे ख़त के कुछ टुकड़े थे
ये उसके अदबो लिहाज़ के टुकड़े थे
हर महफ़िल मे बदल देता है वो अऩदाज़े बयां
ये उसकी अपनी ज़ुबान के टुकड़े थे
शिफ़ा मिली मुझे बेहुरमियत के बिस्तर पे
ये मेरी ग़ैरत और हया के टुकड़े थे
छलक रहा था जो उस ज़ईफ़ की आंखों से आब
ये उसकी औलाद की तरबियत के टुकड़े थे
उसके सीने से गुज़री हवा ने बतलाया
वहां मेरी भी सांसो के चंद टुकड़े थे
मकान गिनाये उसने शहर में कई अपने
ये उसकी ख़ानदानी निज़ामत के टुकड़े थे
जवाब देता रहा मेरे सवाल पूछे बिना
ये उसकी बहकी हुई शख़सियत के टुकड़े थे
कहां का ख़ून कहां की मिट्टी कहां के पत़थर ओ ताजमहल
ये सिसकती माओं के दिलों के टुकड़े थे
उसे था इऩतेज़ार मैं लौटुंगा तव ऐ महताब लेकर
और मेरे हाथों में उसकी ख़वाहिशों के टुकड़े थे
मुझसे मुख़ातिब तो हुआ , पर बे सलाम हुआ
ये मेरी बेगरज़ मोहब़बत के टुकड़े थे
उसको मस्जिद मे इतने फ़िरको ने टोका था
बाहर निकला तो ईमान के टुकड़े थे
जावेदा हो गये जो धब्बे उसकी आंखों में
वो उसके टूटे हुऐ घर के टुकड़े थे
