तस्वीर
तस्वीर
मेरी तस्वीर ने मुझसे पूछा
ज़िन्दगी क्यों मुस्कुराती है
जब छूटता है ज़िस्म से रूह का दामन
तो दिवाल पर टन्ग कर रह जाती है
मेरी आँखों ने मुझसे पूछा
क्या देख सकती है तू रूह को
कहती है नहीं
इनको तो बरसना है खुशी हो चाहे गम में
जिस तरह साथ है सीप और मोती का
तो आँखें बंद होते ही दामन छोड़ जाती है
मैने पूछा इन हाथों से क्या काम है तेरा
बोल बैठे ये मेरे बिना अस्तित्व क्या है तेरा
फिर पूछा मैने इन पैरों से
क्यों है तू इस धरती पर
कहते है बोझ है तू
तुझको ढ़ोता हूँ, जीवन के हर मोड़ पर
वक्त जब होता है आखिरी तो
आँखें, हाथ, पैर, शरीर किसी का
काम नहीं होता
क्योंकि
जीवन के इस मोड़ पर
बुझ जाती है लौ ज़िन्दगी की
दीवाल पर टन्ग कर रह जाती है
मेरी वो तस्वीर मुस्कुराती
जिसने मुझसे पूछा था
कभी
ज़िन्दगी क्यों है मुस्कुराती