त्रिभंगी छंद...
त्रिभंगी छंद...
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प्रभु दे दो स्वामी,
दर्शन नामी,
अंतर्यामी,अब हर्षा।
अब दुख बन बादल,
करुणा निश्छल,
नैनों से जल,हो वर्षा।
ये कैसी विपदा,
आई भगवन,
मरते जन-जन,तुम जानो।
जो मन से डरते,
तुम पर मरते,
निर्मित करते,तुम मानो।
ज्यों कलकल सरिता,
गाती कविता,
धुन मृदुवाणी,आज सुनो।
ये बहती नदिया,
लोच कमरिया,
सी कल्याणी, प्रीत बुनो।
नग उर से निकली,
ढप-ढप ढपली,
करुणा स्वर में, राग धुनो।
मल जल में मिलती,
नित-नित घुलती,
सदा मलिनता, रोग गुनो।