सुख की रातें
सुख की रातें
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काश !
आज, कुछ बातें होती ..
बीच में फैला सन्नाटा,
बोलता ..
हम सुनते, चखते,
घूंट घूंट पीते, उन बातों को ..
जो, कभी मुखर न हो सकी,
बस, सन्नाटा भर रही ...
बातें रोज की ..
चाय और भोज की ..
न होती !
होती !
भूली हुयी उस पहली शाम की !
बातें करते कटीं, उस रात की ..
बातें पुरानी ..
काली, घनी मूँछों की,
घने, छाए सिर पर बालो की,
या
पतली, छोटी उंगलियों की,
रु ई के फाहे से गालों की ..
भूलें, ये बातें ..
खोएं वे सुख की रातें ..
याद करो बातें ..
लौटा लो, सावन की बरसातें ..
पतझड़ के बाद,
आते, पत्ते नए,
तन पुराना ..
मन नया कर ले ..
आओ, आज,
फिर, कुछ बातें कर लें ।