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JAYANTA TOPADAR

Others Children

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JAYANTA TOPADAR

Others Children

स्कूल जब नहीं जा पाए...

स्कूल जब नहीं जा पाए...

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उन गुज़रे पलों की (कोरोनावाइरस की) बंदिशों में बंधे हरेक असहाय शिक्षार्थी का दिल...

आज भी अफसोस करता होगा !


न जाने कितने सपने बुने होंगे... न जाने कितने ही टूट कर बिखर गए होंगे..!

बच्चों का वो मजबूर हालात... वो गृहबंदी जीवन... वो दिल की हसरतों का मुरझा जाना...

वो बाहर खुली हवा में साँस लेने की चाह पूरी न होना...

क्या ऐसी पराधीनता की कभी बच्चों ने कल्पना भी की थी?

उन गुज़रे पलों की बंदियों में बंधे हरेक असहाय शिक्षार्थी का दिल

आज भी अफसोस करता होगा...।


अपने सहपाठियों के साथ मिलकर विद्या-लाभ, वार्तालाप, खेलकूद

और आनंद का अनुभव न कर पाने की घुटन...

अपने गुरु जी के समक्ष बैठकर शिक्षा-लाभ न कर पाने की मजबूरी...

कक्षा में न बैठ पाने का बेहद अफसोस...

बेशक़ उन गुज़रे पलों की बंदिशों में कहीं तो दब कर रह गईं हरेक शिक्षार्थी की हसरतें...


क्या ऐसी पराधीनता की कभी किसी बच्चे ने कल्पना भी की थी ??

क्या कभी किसी शिक्षार्थी ने (शारीरिक रूप से स्वस्थ-सबल होते हुए भी)

घर बैठे-बैठे 'आनलाईन' परीक्षा देने की कल्पना भी की थी ?

हाँ, हरेक शिक्षार्थी ने उन गुज़रे दिनों की कुछ-न-कुछ बात अपने दिल में दबाकर रखी है...



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