श्यामल मेघा
श्यामल मेघा
श्यामल मेघा बरस-बरस कर
धानी चूनर सजा रहे
गरज-गरज ये काले मेघा
चहूँ दिश मृदंग बजा रहे
पावस राजा के स्वागत में
दामिनी दम-दम दमक रही
सुराधिपति की इंद्रसभा में
अप्सरा ज्यों मसक रही
बयार चल रही नर्तन करती
वृक्ष जुहार में रुके-रुके
पावस राजा के सम्मान में
उत्तुंग शिखर भी झुके-झुके
भादों की श्यामल शोभा यह
मन में भरती अजब हुलास
पावस प्रियजनों का प्यारा
रमता सबके मन विलास
विरही जन को लेकिन यह
कितना अधिक सताता है
साजन के बिन जिया उनका
कहीं भी चैन नहीं पाता है
हे भादों के श्यामल मेघा !
बरसो पर दिल ना तरसे
साजन संग झूलें झूला
नैना उनके बिन ना बरसें.....
