STORYMIRROR

Pratibha Priyadarshini

Romance

4  

Pratibha Priyadarshini

Romance

शून्य

शून्य

1 min
1.7K

तुम ने ठीक ही कहा

में जीरो हूँ

एक बड़ी सी जीरो

शून्य....।


कोई मोल नहीं है मेरा

इस तंज को मै 

गलत समझ बैठी,


बिना मोल के होने को

अनमोल मान बैठी।

तभी तो तुम भी 

बताते रहे, जताते रहे

बार बार..... लगातार।


कि रे मूर्ख ! अनमोल नहीं

अनावश्यक है तू

जो मुफ्तमें भी मिले,

तब भी कोई न ले।


पर मैं अब भी नहीं समझी

हमारे रिश्ते का गणित।

ठीक है, मैंने तुम्हारे जीवन में

खुशियां कोई जोड़ न पाई।


पर कुछ घटाया भी तो नहीं,

गुणा तुमने करनी चाही नहीं,

और विभाजन मेरी नियत नहीं,

शून्य जो हूँ।


माना मेरी कोई मोल नहीं,

मैं गिनती मैं आती नहीं।

पर तुमने भी तो मुझे

हमेशा पीछे ही रखा

कैसे काम आती !


कभी अपने आगे रखते तो देखते

खुद मूल्यहीन सही

पर तुम्हारा मोल दस गुना करती,

शून्य जो हूँ।


हाँ, हूँ मैं शून्य जैसी

बिना धार की एकदम गोल,

अनंत ब्रह्मांड की महाशून्य में

जब मैं भी खो जाउंगी।


आसमान की छोर नापती

वो तुम्हारे गहरे आँखों को

शून्यता में दिख जाऊँगी।


मैं शून्य हूँ....

शून्य ही हूँ...।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Pratibha Priyadarshini

Similar hindi poem from Romance