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Pratibha Bhatt

Inspirational

4  

Pratibha Bhatt

Inspirational

सब्र का कछुआ

सब्र का कछुआ

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कहते है कामयाबी,

 कोई सस्ता और छोटा,

रास्ता नहीं खुलता और,

बंद होता है मेहनत की,

चाबी से, सब्र मेरा थोड़ा- सा,

कछुआ जैसा धीमा,

और दुनिया की प्रतिस्पर्धा,

खरगोश जैसे फुर्तीली,

तानों की झड़ी लगी थीं,

अरे मंज़िल तक पहुंचोगे?

पीछे खुद को देख मन होता दुखी,

पर सब्र का कछुआ कहता,

आएगा दिन एक तेरा भी ,

होंगी मुश्किलें बड़ी सी नदी,

जैसी पार कर कैसे भी,

दुनिया के बड़े बड़े खरगोश,

प्रतिस्पर्धा में भागेंगे तेज,

जो सुस्ताएंगे बीच में भी,

पर तुम चलती रहना तब भी,

पीठ पर मिलेंगे खंजर भी,

मजबूत रखना इरादे,

कड़ी मेहनत और कड़े भी,

पहुंच गया एक दिन सब्र का,

कछुआ अपनी मंज़िल पर,

दुनिया का खरगोश,

हो गया हतप्रभ,

कैसे हुआ ये सब,

ये था बिना मतलब

सब्र का कछुआ मुस्काया

बोला हर रोज़ पीता,

पानी मेहनत की,

नदी के गहरे का, 

रोका न लहरों ने रास्ता,

पाई मंज़िल धीरे - धीरे,

 नन्हे मन के कदमों से,

ईश्वर को भजते हुए,

निखरते हुए कुछ,

बिखरते हुए पा गया,

जीवन सब्र रूपी कछुआ!



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