साल गया, अहसास ठहर गया
साल गया, अहसास ठहर गया
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विदाई की दहलीज़ पर ये साल,
और मैं अब भी मुट्ठी भींचे बैठी हूँ
अनगिनत लम्हों के फूल पकड़े
सूख गए सब
ख़ूबसूरती से गहरे रंग में
स्मृतिचिन्ह बन कर सज गए
मेरी कविता की डायरी में
पर देखो ना
खूशबू अब भी बरक़रार है
कहते हैं जो आत्मा को छू जाए
वो प्यार कभी मरता नहीं
अनदेखे धागों में बँधे रिश्तों की
कभी बिखरते नहीं।।