राधा छंद
राधा छंद
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१)
सिंधु में धारा मिले अदृश्य हो धारा।
यों विधाता में समाता विश्व ये सारा।
क्यों न आओ शून्य से खोजें विधाता को,
सृष्टि की धारा के स्वामी दृश्य दाता को।।
२)
प्रीत के नव पुष्प सुरभित खिल उठे प्यारे।
गीत मधुरिम चेतना के छिड़ गये न्यारे।
रश्मियाँ नव कोपलों पर नृत्य कर चहकीं,
प्रेम सौरभ से हजारों वादियाँ महकीं।।