पुत्रवधू
पुत्रवधू
बेटियाॅं चिड़ियों सी चहकती हैं
परियों सी खिलखिलाती हैं
सात फेरों के बंधन में बंधकर
फिर वो बहू बन जाती हैं
बड़े अरमानों से गठजोड़े में
माॅं बेटी को विदा करती है
आंखों में नया संसार लिए
फिर वो पुत्रवधू बन जाती है
कलियों से वह फूल बनती
माता-पिता का आंगन महकाती है
चांद के संग चांदनी बनकर
ससुराल में रौशनी फैलाती है
बाबुल का घर छोड़ कर
न्यू गृहस्थी बसाती है
नई खुशियों संग एक बेटी
नए घर में बहु बन आती है
माता-पिता का संग छोड़कर
सास ससुर को अपनाती है
पति प्रेम मन में रखकर
वह ससुराल में आती है
सिंदूर माथे पर धारण कर
दांपत्य जीवन ग्रहण करती
छोड़ मायका ससुराल में कदम रखती है
फिर वो बेटी से बहू बनती है
दुलार जब ससुराल का मिलता
जैसे हों प्यार संसार का मिलता
खुद को सौभाग्यवान समझती है
वह तो अपने को मूल्यवान समझती है
बेटी जब ब्याह कर
एक कुल से दूसरे कुल में आती है
कुल की हर मर्यादा निभाकर
वो तो बहू बन जाती है।