प्रेम त्रिकोण
प्रेम त्रिकोण
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ये देश हमारा पावन पावन इस धरा की माटी है ।
श्रद्धा और समर्पण अमरप्रेम रसासिक्त पाती है ।
प्रेम त्रिकोण को स्थान कहां? यहां पत्नी सती होती है ।
महलों की राजकुमारी पतिसंग 14 वर्ष वन जाती है।
पति हेतु जीवन उत्सर्ग कर अमर प्रेम शिक्षा देती है ।
रख वट सावित्री व्रत हर नारी उन्हें शीश झुकाती हैं ।
यमराज से भी लड़कर ,स्वपति प्राण ले आती हैं ।
नल-दमयन्ती, तारा-हरिश्चन्द्र की कहानी दाम्पत्यार्थ गाती है।
पश्चिम बयार आकर प्रेम त्रिकोण खींच लाई है ।
अपना इसे ,संस्कृति को झुठला, क्या मूल्य चुकाया है ?
अपने शान्त जीवन मे खुद प्रेमत्रिकोण को कर आमंत्रित ।
हिला सामाजिक बुनियाद, बुला शामत हुए अनियंत्रित।
अभी कुछ बिगड़ा नहीं लौट चले पकड़ संस्कृति डोर ।
कर तौबा प्रेम त्रिकोण से जिसमें उलझे जीवन छोर ।