प्रारम्भ का प्यार
प्रारम्भ का प्यार
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एक हूरों सी परी हैं।
जिससे मैं खुद से भी ज्यादा इश्क करता हूं ।
मगर...
प्रयास यह जानने का है,
कि वो भी मुझसे इश्क करती है के नहीं।
वो जब भी मेरे पास आती है,
अपनी जिंदगी के पुराने धुल भरे पन्नों को खोलती रहती हैं।
मैं यह अच्छी तरह से जानता हू,
कि आदत, पसंद और प्यार मे बहुत फर्क होता है।
मैं तो कब का उसके इस व्यवहार को मोहब्बत नाम दे देता,
परन्तु....
मुझे उसकी भी आकांक्षा जाननी हैं,
मुझे उसके पलकों के निचे चमकिले काले नयनों को जानना हैं।
मैं तो बस यहि दुआ करता हूँ,
कि वह अपनी जिंदगी के हर एक मनज़र मे मुसकुराए।।