STORYMIRROR

Renu Sahu

Others

4.3  

Renu Sahu

Others

पिताजी

पिताजी

2 mins
14K


मैंने देखा, पल प्रतिपल, उन आँखों में विश्वास।

जो भरता हममें साहस, और बढ़ता हमारा आत्म विश्वास।

हाँ , देखा है मैंने उनमें, नया स्वप्न और नई आस।

गर्व से तना उनका सीना, स्वाभिमान से दमकता ललाट।

गिर गिर कर हर चढ़ाई से, मैं जब -जब भी रोई।

आपकी बातों ने दिया साहस मुझे, मुझमे नई अंकुरण संजोई।

पिताजी, इस दुनिया से लड़ने का सोच, मै जब डर रही थी।

आपकी ओजस-वाणी और आत्म-विश्वास मुझमें साहस भर रही थी।

मैं  ना टोह पाई पिताजी, कितना अथाह हृदय आपका।

कैसे दूँ विवरण उन्हें, मेरे शब्दों में कहाँ वो विशालता।

पिताजी, ना जाने उस रब ने, कैसे आपको रचा होगा।

कैसे इतनी सहनशक्ति, ये अदम्य साहस भरा होगा।

अपने आपको सबल बनाने का, जब दुनिया ने सोचा होगा।

हर एक ने अपने पिताजी का, उस वक़्त मनन किया होगा।

ऐसे ही चट्टानों की तरह, तूफ़ान के मद को चूर किया।

समेत हर दर्द सीने में, मुख पे शांति और ख़ुशी प्रसार किया।

आप जानते सब कुछ सच-सच, फिर भी नहीं क्यूँ जताते हैं।

हमारी चोट पे दर्द आपको ही होता, पर तनिक भी नहीं दिखाते हैं॥

माँ की ममता तो कभी न कभी, बन मोती छलक आती है।

इस श्रृष्टि के आप अद्वितीय पुरुष जिसकी करुणा, हर कण-कण से छिप जाती है॥

मेरी खिलखिलाहट पे देखी, हँसी आपकी।

मेरी सफलता पे फूला, आपका सीना।

और जब गिरी धम्म से, टूट गई मैं तब फिर आपने ही जगाया, मेरा सपना।

नहीं दे सकते इन कर्ज़ों  का, कभी भी कोई ब्याज ।

लेकिन मेरी कोशिश सदा, बनी रहे माथे पे सदा ये शान ।

हो मुस्कुराहट हमेशा मुखड़े पे और आपको हम बच्चों पे नाज़.....

 

 


Rate this content
Log in